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गडेरी ... एक लघु कहानी

              "अब वो कैसी है डाक्टर साहब".... मैने बड़े ही हड़बड़ाहट भरे स्वरों में डाक्टर पाण्डे जी से पूछा ."देखो  ! उसके शरीर का 85 फिसदी हिस्सा पूरी तरह से जल चुका है ,हम उस नन्ही सी जान को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे है ऊपर वाले पर भरोसा रखो ".... डाक्टर ये बोलते हुए बाहर को चला गया. ये सब सुनते ही मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया. मै पास मे पड़ी स्टूल पर बैठ गया. मेरे कानो मे  बार-बार ना जाने उसकी शरारत भरी आवाज कहाँ से सुनायी पड़ रही थी. वो उस दिन सुबह के वक्त मेरे पास आई थी एक मैली सी सफ़ेद  फ्रॉक और गर्म ऊन की मटमैली बनियान पहने हुवे हाथो मै एक बुरांश का फूल लिये. गहरी नीली आँखे, गोरा रंग और थोड़ी सी जरूरत से जादा मोटी वो अपनी जेब से कुछ पुराने तास के पत्ते और चमकीले पत्थर निकाल कर मेरे आँगन मे खेलने लगी. "अरे मोटी तूने नाश्ता कर लिया क्या ? " मेरी पत्नी ने कुछ मज़ाक और ममता भरी निगाहों से पूछा तो उसका जवाब बड़ा ही विचित्र था, अपना सर हिलाकर ना भी बोली और मुंह से हाँ भी बोली. मै तो उसका ये जवाब समझ नहीं पाया लेकिन श्रीमती जी भली भांती जान गयी " तो उस चुड़ैल ने आज भी तुझे नाश्ता नहीं करवाया, भगवान तो उस जालिम को नर्क मै भी जगह नहीं देगा " वो उसे अंदर ले जाकर रोटिया खिलाने लगी जब खाकर वो बाहर आई तो मैने उससे पूछा - बेटा तुम्हारा नाम क्या है ? अपने चमकीले पत्थरों को हाथो से बजाती हुयी बोली "लमा " और फिर वो मेरे करीब आकर मेरे लाईटर से खेलने लगी जैसे वो लाईटर बहुत ही चमत्कार वाली चीज हो, "गडेरी तू क्या कर रही है ?" मेरी पत्नी ने जब उससे ये पूछा तो गडेरी का जवाब था "मै गाली चला लही हूँ" मेरे लाईटर को घसीटते हुवे ना जाने वो कौन सी कोमल कल्पनाओ की यात्रा कर रही थी "गडेरी... वाके मे ये गडेरी (एक उत्तरखंडी शब्जी) ही है " मैंने उसे अपनी गोद मे खींच लिया |

          पता नहीं गडेरी और मेरी दोस्ती कब हुई. अब तो ना मै उसके बगैर रह सकता था और ना ही उसके बगैर मेरा खाना खाने को मन करता था, इसी कारण मेरी पत्नी और गडेरी की सौतेली मां के बीच कई बार वाद-विवाद प्रतियोगिता चल चुकी थी. पर ये प्रतियोगिता भी मेरी और गडेरी की दोस्ती नहीं तोड़ पायी, पता नहीं जब से मैने गडेरी को देखा था, तब से मेरे अंदर का बच्चा बाहर कब और कैसे आ गया कुछ पता ही नहीं चला, अब तो मै गडेरी के साथ मिट्टी से खेलने लग गया हूँ. और तास के पुराने पत्ते, सफ़ेद कंकड और रंगीन धागों को भी अपनी जेबों में रखने लग गया हूँ. सच पूछो तो मै अपने इस छोटे दोस्त के साथ बहुत खुश हूँ. शायद वो भी मेरे साथ बहुत खुश है वो अब पहले से जादा खूबसूरत और अच्छे कपड़े पहनती है मै जिस स्कूल मै टीचर हूँ उसी स्कूल मे उसका नाम भी लिखा दिया हैं. बहुत खुश थी वो स्कूल में और स्कूल में भी अब तो सब उसे गडेरी कहकर ही पुकारने लगे थे. वो पूरे स्कूल मै सबसे शरारती और अच्छी बच्ची थी. गडेरी रोज होमवर्क करने का बहाना बनाकर  मेरे पास आ जाया करती थी, किताबों का बैग एक जगह रखकर हम खूब मस्ती करते. टेलीविजन पर कर्टून देखते, कभी मैं उसे कहानी सुनाता, कभी वो मुझे पहेलिया बुझाने को बोलती, अपनी इन हरकतों से कभी-कभी मै रात में सोते-सोते सोचता हूँ कि कही मै कोई सपना तो नहीं देख रहा. आज तो वो मेरे लिये आधी टोफी लेकर आ गयी, "गडेरी ये कहा से आई....? " "मास्तल जी ये मुझे दीदी ने दी आधी मैने का ली आधी तुम्हाले लिये" हे भगवान ! इंशान को एक दूसरे से इतना लगाव क्यों हो जाता है? आज एक अजीब से दर्द ने मेरे हृदय को पिघला दिया. मैने गडेरी को ज़ोर से अपने सीने से लगा दिया, और मै रोने लगा था उस दिन ज़ोर ज़ोर से उसके कंधे पर अपना सर रखकर, और उस पगली को तो मालूम भी नहीं था कि मै क्यों रो रहा हूँ? और मुझे देखकर खुद भी रोने लगी थी पगली, मोटी..... गडेरी कही की |

     आज सुबह से ही मै परेशान था, ना ही गडेरी आज स्कूल आई और ना ही मेरे घर पर. अखिर क्या बात हो सकती है? मुझे अंदर से आज कुछ गलत-गलत ख्याल आ रहे थे कल रात भर सपने भी बुरे आये थे. पता नहीं आज क्या होगा? मै अपने लाईटर से गडेरी की भांती खेलने लग गया, अचानक मेरी पत्नी रोती हुयी आयी, कारण जानने पर मेरे होश उड़ गए. गडेरी के गोद में उसका छोटा सोतेला भाई था वो उसे अपने आंगन में घुमा रही थी अचानक उसके हाथो से छोटा भाई गिर गया. उस बच्चे को तो जादा चोट नहीं आई पर गडेरी की सोतेली मां ने गुस्से में आकर उसे खूब मारा और "जा निकल जा कलमुही मेरे घर से" ये कहते हुऐ उसे जोर से धक्का दे दिया. बहुत डरी और सहमी हुई मासूम गडेरी उस धक्के को सह न सकी. और दूर जलती हुई भूसी की ढेर में संमा गयी. पता नहीं न जाने मै गडेरी के ख्यालों मै कहाँ खो गया था, सामने नजर पड़ी तो पत्नी रो रही थी, डॉक्टर मेरे कंधे पर हाथ रखकर न जाने कब से बोल रहा था. अपना वही पुराना डायलॉग "आइ एम सॉरी मास्टर जी हम गडेरी को नहीं बचा पाये" आज मेरी आँखे रो रही थी, कानो में गडेरी के स्कूल की प्रार्थना जिसे वो हमेसा गाया करती थी गूंज रही थी- "गुरु ज्ञान हमको देंना, इंशानो पर मर मिटे हम "
                                                                                                कहानी:- भास्कर आनंद तिवारी  

 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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