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धार से लिखा गया एक प्रेम-पत्र: भास्करानंद


     हरूली आज में इस धार में अकेला बैठा हूँ, और नीचे की तरफ मेरा जो ये खतरनाक भ्योव (पहाड़ी) है न इसमें आजकल बांज, बुरांश, चीड़, काफल, केसिया, प्योली और न जाने अजब-गजब के फूलों से सारा जंगल झूल रहा है. आखिर पगली चैत्र का महीना जो ठैरा सांय-सांय करती पौन (पवन), बुरांश के फूलों के कपोलों के अंदर गूंजते भौंरे, और झिंग-झिंग-झिंग गाता ये झींगुर. ये घुगुती, कफुवा, न्योली, सुवा, और न जाने पगली कौन-कौन से पक्षियां मेरे आस-पास गा रही है, अटखेलियां कर रही है, मैं पिछले 2 घंटे से इन्हें देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ, और ढूंड रहा हूँ अपने पिछले निशान. शायद जो अब पिरूल में दब गए हों या आग लगने से खाक हो गए है. मगर मेरे अंदर आज यादों के कई बड़े-बड़े पिटारे खुल रहे है.

पगली तुम्हे याद तो होगा ही न ये बुरांश के फूल और मेरा रोज-रोज आपको एक फूल देना और वो भी सिनेमा वालों के अंदाज में.... सच्ची बोल रहा हूँ हरूली मेरे अंदर कोई चिंगारी उठ जाती थी बेबसी की. मैं बुरांश का फूल बन आपकी आँखों में रम जाना चाहता था. और आप भी तो पागल ही थी न. याद है वो गांव की वन पंचायत की पांच फिट की दीवाल और आपको ऊपर चढ़ाने के लिए गोद में उठाना पड़ता था. अगर नहीं उठाओ तो आपका वो रूठना, मनाना और पागल इतराट कितना दिखाते थे आप बापरे! एक पल तो मुझे लगता था कि आप सच में मुझे छोड़कर चली ही जाओगी. फिर मुझे मनाने का आपका तरीका भी इस महीने में बड़ा ही अजीब ठैरा. बुरांश का फूल पकड़ो और मेरे कुर्ते में घसौड़ दो. फिर इस धार से उस धार.... पता नहीं इतनी ऊर्जा कहा से आती थी.


तुम्हे याद ही होगा ये केसिये के पेड़ को हमने एक दिन जंगल की आग से बचाया था. उस दिन मुझे आपके अंदर वात्सल्य रस की गहराई का पता चला. आप रो रही थी जब वो नन्हा पौधा झुलस गया था. आप भी पागल ही थी ख़ामखा मुझे भी रोना आ गया था. पता है आज वो पेड़ बहुत बड़ा हो गया है और दिखने में बिलकुल तुम्हारी तरह. मैं अभी इसीकी छाया में बैठा हूँ ये बिलकुल तुम्हारी तरह ही झगड़ालू है. देखो न मेरे सर पर छोटे-छोटे फूल उढ़ेल दिए है. और फिर ये सारा जंगल एक दूसरे से टकरा के ताली बजा रहे है. शायद ये मुझ पर हंस रहे हो या फिर हो सकता है तुम्हारी अनुपस्थिति में मेरा मन बहला रहे हो. मुझे मालूम नहीं बस आज मैं तुम्हे ही याद किये जा रहा हूँ.


ठीक जिस बड़े से पत्थर में हम बैठा करते थे हरूली वहां पर अभी स्कूल के कुछ बच्चे बैठे है. उनकी हाथों में काफल की छोटी-छोटी टहनियां है साथ मैं बुरांश के फूल और केसिया के फूलों के गुच्छे भी. शायद ये बच्चे भी तुम्हारी तरह थोड़ा पागल होंगे ... क्यों? तुम भी तो कच्चे काफल खाने के लिए सारी टहनियां ही मुझसे तोड़ मांगती थी. उस दिन तो आपको मालूम ही होगा जब मैंने पहले आपके कहने पर बहुत सारे बुरांश के फूल तोड़े थे आखिर पगली को अपना घर जो सजाना था. और फिर थोड़ा आगे जाने पर आपने कहा था कि कच्चे काफल खाती हूँ. फिर जिद्दी लड़की आपने कहा कि मुझे गोद में उठाकर पेड़ में चढ़ाओ !. हम अपने ही मौज-मस्ती मैं इतने खो गए की जमीन में रखे बुरांश के फूलों को ही भूल गए. आपको शायद ही याद हो जब लास्ट फूल को बकरा खा रहा था तो आपकी नजर पड़ी. आप रो गए जोर-जोर से... हा हा हा हा हा... बाबाहौ! मेरे तो हँसते-हँसते हालत ख़राब हो गयी थी उस दिन. आपने गुस्से से चुप हो जाने को भी कहा था और मैं भी वही करता जो आप कहती आखिर मुझे आपका हीरो जो बनना था यार सिनेमा वाला.


हरूली आज तेरी बहुत याद आती है आज मेरे पास न तो आप हो और न ही उस दौर का जंगल. सच्ची तो कह रहा हूँ… न आप हो, न बुरांश है, न हरियाली है, न बांज है, न केसिया के फूल है और न ही घुगुती की घुराट... यंहा हर साल जंगल को एक अग्नि परीक्षा जो देनी ठैरी. जिसके कारण आपके और मेरे जो भी प्रेम के चिन्ह थे सब धूमिल हो गए. बड़ी मुश्किल से आपकी यादों को भुला था पता नहीं ये प्रकृति आपकी याद कैसे संजो देती है. पता नहीं हरूली तुम कहाँ हो किस हाल में हो मैं नहीं जानता. बस याद रखना... अरे! पगली मुझे नहीं... बल्कि अपनी उस हंसी को जिसे मैं अभी तक इस जंगल में महसूस करता हूँ.

अब आगे क्या लिखुँ? कुछ लिखना तो मुझे आने वाला ही नहीं ठैरा. बहुत दिनों से प्राण कुलबुलाट जैसा पाड़ रहा था सो जो मन में आया लिख दिया कलम की गलती माफ़ करना. हरूली अपना ध्यान रखना. सदा हंसी-ख़ुशी रहना आगे दो लाइनें आप के लिए... 
                                                                                                                                      आपका 

                                                                  पागल कवि

1 comment:

  1. जंगलों मे आग से सिर्फ बनस्पति ही नहीं अपितु खुबसूरत यादें भी राख हो जाती हैं। आओ, सब मिलकर जंगलों को आग से बचांए।

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