प्रकृति के सुकुमार कवि स्व. सुमित्रानंदन पन्त जी की कुमाऊँनी भाषा में रची गयी एकमात्र कविता- "सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां , फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां । सल्ल छ , दयार छ , पई अयांर छ , सबनाक फाडन में पुडनक भार छ , पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग , रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ । सारि दुनि में मेरी सू ज , लै क्वे न्हां , मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ । काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आँखोड़ छ , हिसालु , किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ , पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ , फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ? सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां , मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा ॥"
Post a Comment