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वीर भड़ माधोसिहं भंडारी द्वरा निर्मित गूल : राकेश पुंडीर

सोलवीं शताब्दी के प्रथमार्ध में गढ़वाल के महाराजा महपतशाह का शासन था. उस दौरान औरंगजेव अपने जीवन के किशोरवय में रहा होगा और कदाचित महान शिवजी महाराज भी अपने बचपन के दौर से गुजर रहे होंगे.  परन्तु तब गढ़भूमि में "वीर भड़ माधोसिंह भंडारी " गढ़ सेना के प्रमुख सेनापित थे. जिन्हेंने गढ़ राज्य की रक्षा हेतु देशांतर में वीर शिवजी की भांति कई लड़ाईयां लड़ी और विजय रहे.



परन्तु अपने गांव मलेथा की लड़ाई वे नहीं जीत पा रहे थे. क्यूँकि मलेथा की 88 इक्कड़ भूमि उखड (ऊसर - निर्पानी) वाली भूमि थी. पानी की एक भी बून्द नहीं थी जिससे की इतनी बड़ी भूमि को सींचा जा सके. जनश्रुति के अनुसार उन्हें उनकी पत्नी उदीना ने एक बार उल्हना दी कि तुम कैसे भड़ (वीर) हो ?  जो तुम्हारी धरती पानी के लिए तरस रही है. कोदा झंगोरा ही यहाँ के भाग में लिखा है सेरे के चावल कहाँ से खाएंगे?.. माधोसिह के मन में ठेस लगी और प्रण किया की इस धरती पर पानी लेकर ही आएंगे. लेकिन लाएंगे तो कैसे ? अलकनंदा तो १०० मीटर नीचे बह रही है तब उन्हे निश्च्य किया कि पहाड़ी के पृष्ठ भाग में जो चंद्रभागा गाड़ (छोटी नदी) बहती है उस पहाडी पर एक सुरंग बना कर मलेथा की धरती को हरा भरा बनाऊंगा. 

उन्होंने एक कुदाल, फावड़ा और सब्बल उठाई और चल दिए पहाड़ फोड़ कर सुरंग बनाने. सुरंग बनाते-बनाते कई दिन कई महीने बीत गए. सुरंग भी बना दी परन्तु पानी फिर भी नहीं पहुंचा. सुरंग के मध्य में ही पानी कही विलीन हो रहा था. वे बड़े निराश और संतप्त हुए .. एक दिन कैला पीर भैरो ने उन्हें सपने में कहा कि हे माधो ! यह मेरा चिरस्थान है तूने इसे बाधित किया है अब तो पानी तब ही पहुंचेगा जब तू मुझे नरबलि देगा... माधोसिह बड़े दुखी हुए और निराशा हो गए.. एक दिन उनके पुत्र गजेसिंह को पिता की निराशा और हताशा का कारण विदित हो गया. पुत्र गजेसिंह गांव की धरती की खुशाली के लिए स्वयं बलि होने को तैयार हुए. यह सुनकर माता मूर्छित हो गयी लेकिन वीरो के वीर गजेसिंह का अटल निष्चय था.

सुरंग में वीर गजेसिंह का बिलदान होते ही गूल से खेतो में पानी की रक्तिम धारा फूट पड़ी. वीर भड़ माधोसिंह भंडारी द्वारा निर्मित और वीर गजेसिंह द्वारा पल्लवित लगभग ४५० सौ साल पुरानी आधा किमी लम्बी ऐतिहासिक गूल का अवलोकन करने का पिछले सप्ताह ही मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ यह क्षण मेरे जीवन के अविस्मरणीय व् अद्वितीय पल रहेंगे....लेख - राकेश पुंडीर मुबई 

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