'वनै-वनै काफल किलमड़ौ छ'... गुमानी पन्त जी की कुछ कुमाउँनी रचनाएँ
कुमाउंनी भाषा के प्रथम कवि और गोरखा और ब्रितानी शासकों के जुल्म पर बेखोफ
लिखने वाले लोकरत्न गुमानी पन्त जी का जन्म 1790 में काशीपुर में हुआ था. गुमानी जी
का मूल निवास अल्मोड़ा का उपराड़ा गांव था. इनके पूर्वज चंद्रवंशी राजाओं के राज्य वैद्य
थे. गुमानी जी कुमाउंनी, नेपाली, हिन्दी और उर्दू के साथ-साथ संस्कृत के भी महापंडित
थे.
काशीपुर नरेश गुमान सिंह देव की राजसभा में राजकवि के रूप में गुमानी जी की
सर्वप्रथम नियुक्त हुई. और टिहरी नरेश सुदर्शन
शाह ,पटियाला के राजा श्री कर्ण सिंह, अलवर के राजा श्री बनेसिंह देव और नहान के राजा
फ़तेह प्रकाश जी के दरबार में भी कवि गुमानी जी का बहुत सम्मान हुआ. सन् 1846 में यह
महान कवि इस संसार से विदा हो गए. और छोड़ गए अपनी रचनाओं का संसार जिन्हे पढ़कर आज भी
उस दौर की संस्कृति की झलक अपने फलक पर अपने आप अवतरित हो जाती है. आइये उनकी कुछ कुमाउनी
रचनाओं को देखते है-
वनै-वनै काफल किलमड़ौ छ.
वाड़ा मुड़ि कोमल काकड़ो छ.
गोठन में गोरु लैण बाखड़ो छ.
थातिन में है उत्तम उपरड़ो छ ||
वाड़ा मुड़ि कोमल काकड़ो छ.
गोठन में गोरु लैण बाखड़ो छ.
थातिन में है उत्तम उपरड़ो छ ||
हिसालु की जात बड़ी रिसालू ,
जाँ – जाँ ले जांछा उधेडी खांछ |
ये बात को कोई नको नि मानौ ,
दूध्याल की लात सौणी पडंछ ||
जाँ – जाँ ले जांछा उधेडी खांछ |
ये बात को कोई नको नि मानौ ,
दूध्याल की लात सौणी पडंछ ||
हिसालू का तोफा,छन बहुत गोफा जनन में ,
पहर चौथा ठंडा ,स्वाद जनरो लिण में ,
अहो,मैं यों समझंछू, यों अमृत जसि वस्तू, के हुनेली कै
अहो,मैं यों समझंछू, यों अमृत जसि वस्तू, के हुनेली कै
उत्तर दिशि में वन उपवन हिसालू काफल किल्मोड़ा ।
दक्षिण में छन गाड़ गधेरा बैदी बगाड़ नाम पड़ा ।
पूरब में छौ ब्रह्म मंडली पश्चिम हाट बाजार बड़ा ।
तैका तलि बटि काली मंदिर जगदम्बा को नाम बड़ा ।
धन्वन्तरि का सेवक सब छन भेषज कर्म प्रचार बड़ा ।
धन्य धन्य यो ग्राम बड़ो छौ थातिन में उत्तम उपराड़ा ।
दक्षिण में छन गाड़ गधेरा बैदी बगाड़ नाम पड़ा ।
पूरब में छौ ब्रह्म मंडली पश्चिम हाट बाजार बड़ा ।
तैका तलि बटि काली मंदिर जगदम्बा को नाम बड़ा ।
धन्वन्तरि का सेवक सब छन भेषज कर्म प्रचार बड़ा ।
धन्य धन्य यो ग्राम बड़ो छौ थातिन में उत्तम उपराड़ा ।
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दिन-दिन खजाना का भार का बोकिया ले
शिव शिव चुलि में का बाल नैं एक कैका
तदपि मुलुक तेरो छोड़ि नैं कोई भाजा
इति वदति गुमानी धन्य गोरखालि राजा
शिव शिव चुलि में का बाल नैं एक कैका
तदपि मुलुक तेरो छोड़ि नैं कोई भाजा
इति वदति गुमानी धन्य गोरखालि राजा
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हलिया हाथ पड़ो कठिन लै है गेछ दिन धोपरी.
बांयो बल्द मिलो छू एक दिन ले काजूँ में देंणा हुराणी ||
माणों एक गुरुंश को खिचड़ी पेंचो नी मिलो.
मैं ढोला सू काल हरांणों काजूं के धन्दा करूँ ||
बांयो बल्द मिलो छू एक दिन ले काजूँ में देंणा हुराणी ||
माणों एक गुरुंश को खिचड़ी पेंचो नी मिलो.
मैं ढोला सू काल हरांणों काजूं के धन्दा करूँ ||
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जजमान भोला परपंचि नारी ।
द्वी भुड़ गडेरी मे दयो पूजा सारी ।
रिसानी खिसानी विशा ज्यू रिसानी ।
यो वॄत्ति देखी मन में गिलानी ।
हरि ओम तच्छत के पुन्तुरी थामी ।
नमः शिवायेति समर्पयामी ।
द्वी भुड़ गडेरी मे दयो पूजा सारी ।
रिसानी खिसानी विशा ज्यू रिसानी ।
यो वॄत्ति देखी मन में गिलानी ।
हरि ओम तच्छत के पुन्तुरी थामी ।
नमः शिवायेति समर्पयामी ।
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विष्णु देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरा.
महराज का महल ढहाया बेड़ी खाना वहाँ धरा |
मल्ले महल उड़ाई नंदा बंगलों से हैं वहाँ भरा.
अँग्रेज़ों ने अल्मोड़े का नक्शा औरी और करा ||
महराज का महल ढहाया बेड़ी खाना वहाँ धरा |
मल्ले महल उड़ाई नंदा बंगलों से हैं वहाँ भरा.
अँग्रेज़ों ने अल्मोड़े का नक्शा औरी और करा ||
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